गांधी से क्यों गुस्सा हो गए थे अंबेडकर – Gandhi se kyo Gussa ho gye the Ambedkar

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Gandhi se kyo Gussa ho gye the Ambedkar

“मैं इस वतन को अपना कैसे कहूं…” — डॉ. अंबेडकर का वह ऐतिहासिक क्षण

Newsaaj24.com में आपका स्वागत है, डॉ. भीमराव अंबेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर, ने अपने जीवन में कई बार समाज की गहराईयों में व्याप्त असमानताओं और अन्यायों को उजागर किया। उनकी एक प्रसिद्ध टिप्पणी, “मैं इस वतन को अपना वतन कैसे कहूं और इस धर्म को अपना धर्म कैसे कहूं जहां हम लोगों की हैसियत कुत्ते-बिल्लियों से अधिक नहीं है, हमें पीने को पानी भी मयस्सर नहीं है,” आज भी समाज में गूंजती है।​

गांधी और अंबेडकर की पहली मुलाकात

अगस्त 1931 में बंबई में डॉ. अंबेडकर और महात्मा गांधी की पहली मुलाकात हुई इस भेंट में अंबेडकर ने गांधी से स्पष्ट शब्दों में कहा, “गांधी जी, हमारा कोई वतन नहीं है।” जब गांधी ने कहा कि उन्होंने सामाजिक सुधार के लिए बहुत कुछ किया है, तब अंबेडकर ने उत्तर दिया, “सभी बूढ़े-बुजुर्ग बीते जमाने की बातों पर अधिक बल देते हैं।” उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि अछूतों के प्रति उसकी सहानुभूति औपचारिकता भर है और अछूतों के नाम पर आवंटित निधियों का दुरुपयोग हो रहा है। इस पर गांधी ने जवाब दिया, “मैं जानता हूं, आप कृत्रिमता से दूर एक सच्चे आदमी हैं।”

सामाजिक असमानता और अंबेडकर की पीड़ा

डॉ. अंबेडकर ने अपने लेख ‘हेल्ड एट बे’ में लिखा है कि “जब सवर्ण और दलित मिलते हैं, तो वे मनुष्य से मनुष्य के रूप में नहीं मिलते, बल्कि परस्पर दो भिन्न समुदायों के रूप में या दो भिन्न राज्यों के नागरिकों के रूप में मिलते हैं।” यह कथन आज भी समाज की वास्तविकता को दर्शाता है।

गांधी से क्यों नाराज थे अंबेडकर? इतिहासकार बताते हैं

कि पहली मुलाकात के दौरान महात्मा गांधी ने अंबेडकर की तारीफ की थी। गांधी ने अंबेडकर से कहा था कि उन्होंने सामाजिक सुधार के लिए बहुत कुछ किया है। उन्होंने समाज से भेदभाव मिटाने के लिए कांग्रेस के प्रयासों का भी जिक्र किया। हालांकि अंबेडकर ने इसका जवाब बड़े ही रूखे अंदाज में दिया।

उन्होंने कहा, सभी पुराने लोग अतीत की बातों को ज्यादा महत्व देते हैं और आप भी पुराने विचारों से चिपके हुए हैं।

उन्होंने गांधी के सामने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि अछूतों के प्रति उसकी सहानुभूति महज औपचारिकता है और कांग्रेस पर अछूतों के नाम पर आवंटित धन का दुरुपयोग करने का भी आरोप लगाया। इतिहासकार कहते हैं कि अंबेडकर ने ये सारी बातें महात्मा गांधी के सामने कहीं। हमारा कोई देश नहीं है… इस मुलाकात के दौरान अंबेडकर देश की नीतियों से इतने नाराज दिखे कि उन्होंने इस देश को अपना मानने से ही इनकार कर दिया। इतिहासकार कहते हैं कि अंबेडकर ने गांधी से साफ शब्दों में कहा था, गांधीजी हमारा कोई देश नहीं है। इस पर गांधी ने कहा, मैं जानता हूं कि आप बनावटीपन से दूर सच्चे इंसान हैं। इस पर अंबेडकर ने फिर जवाब दिया कि मैं इस देश को अपना कैसे कह सकता हूं और इस धर्म को अपना धर्म कैसे कह सकता हूं। उन्होंने आगे कहा कि जिस देश में हमारी स्थिति कुत्ते-बिल्लियों से भी ज्यादा नहीं है, हमारे पास पीने के लिए पानी तक नहीं है, उस देश को मैं अपना देश कैसे कह सकता हूं।

मनुस्मृति और जाति प्रथा के खिलाफ संघर्ष

डॉ. अंबेडकर ने जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया और उसे अन्याय की जड़ माना। उन्होंने इसके लिए कई बार ‘मनुस्मृति’ को नष्ट (जलाने का कार्य) किया। उनका मानना था कि जाति प्रथा को समाप्त करने का एक मार्ग अंतर्जातीय विवाह है, न कि सहभोज। उन्होंने कहा, “खून का मिलना ही अपनेपन की भावना ला सकता है।

निष्कर्ष

डॉ. अंबेडकर का यह कथन न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब है, बल्कि यह उस समय के समाज की कठोर सच्चाई को भी उजागर करता है। उनकी यह टिप्पणी आज भी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम वास्तव में एक समान और न्यायपूर्ण समाज की ओर बढ़ रहे हैं। उनकी विचारधारा और संघर्ष हमें प्रेरित करते हैं कि हम सामाजिक असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाएं और एक समतामूलक समाज की स्थापना के लिए प्रयासरत रहें।

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